भारत देश में 28 राज्य है और 8 केंद्र शासित प्रदेश है | भारत में 102 प्रमंडल है व 748 ज़िले है जो 5, 570 तहसीलों से मिलकर बनी है | भारत में करीबन 6, 64, 369 गाँव है | करीबन ढाई लाख (2, 69, 352) ग्राम पंचायतें है | भारत में लगभग 4, 000 शहर है या छोटे नगर है | भारत की जनसँख्या लगभग 140 करोड़ है | भारत का क्षेत्रफल 32 लाख 87, 000 वर्ग किलोमीटर है |
कहने का तात्पर्य ये है की भारत क्षेत्र, जनसंख्या, एवं विविधताओं के मामले में काफी वृहद है | इसे कोई भी एक व्यक्ति सही ढंग से नहीं चला सकता | अतः विकेन्द्रीकरण किया गया | वर्ष 1992 में 73वें और 74वें संशोधनों द्वारा पंचायतों और नगरपालिकाओं की संवैधानिक व्यवस्था की गई |
तो बात यह उठती है की चूँकि देश एक व्यक्ति द्वारा नहीं चल सकता तो हमें अनेक योग्य व्यक्ति चाहिए | क्यूंकि यह अत्यंत आवश्यक है की जिनके पास भी जिम्मेदारी हो वह उसकी योग्यता रखे | अन्यथा समस्याएं और गहरी होती चली जाती है |
2, 69, 352 ग्राम पंचायतों में से 2, 48, 333 ग्राम पंचायतों में सरपंच की व्यवस्था है | ये ढाई लाख सरपंच या मुखिया जन प्रतिनिधि होते है | इनका चुनाव मुख्यतः जाति, आरक्षण इत्यादि द्वारा होता है | महिलाओं को सशक्त करने हेतु संविधान में उन्हें एक तिहाई आरक्षण दिया गया | करीबन 20 राज्य ऐसे है जहाँ पचास प्रतिशत आरक्षण महिलाओं को है | हांलांकि ये अच्छी बात है, किन्तु महिला साक्षरता दर देश में 70 प्रतिशत के ही आस पास है | यह पुरुषों के 84 प्रतिशत साक्षरता से कम है | दूसरी की हमारी साक्षरता की परिभाषा ही बहुत निम्न है | ऐसी साक्षरता का योग्यता से लेना-देना कम ही है | अयोग्य सरपंच एक समस्या है | क्यूंकि ऐसे एक नहीं लाखों है | भ्रष्टाचार भी एक समस्या है | कहीं सरपंच पति ही कार्यभार संभाल लेते है |
इसका समाधान यह हो सकता है की इन सरपंचों, मुखियाओं, के प्रशिक्षण हेतु कोई संस्था हो | इन्हें योग्य बनाया जाए | ऐसे ढाई लाख लोग योग्य बनेंगे और प्रणाली बद्ध तरीके से योग्य बनते रहेंगे तो देश सशक्त होगा | पुणे में ऐसे पंचायत राज प्रशिक्षण केंद्र चलाए भी जा रहे है | इसे देश भर में चलाना होगा | ताकि उन्हें अपनी जिम्मेदारियों का एहसास हो | वो योग्य बनें | नैतिक बनें | पारदर्शिक तरीके से पैसों का सटीकतम उपयोग कर सकें |
उसी तरह जो 4, 000 से भी अधिक शहरी स्थानीय निकाय है जो नगर पंचायत, नगर पालिका और महानगर पालिकाओं में बंटे है, उनमें जो भी चुनकर आते है, जैसे महापौर, वार्ड सदस्य इत्यादि उन्हें भी प्रशिक्षित करने हेतु संस्था हो, प्रणाली हो | इन्हें योग्य बनाया जाए | ऐसा नहीं है की इन्हें प्रशिक्षित नहीं किया जाता, किन्तु उस प्रशिक्षण को बेहतर बनाया जाए | नैतिकता, नेतृत्व, प्रबंधन, नए सुझाव, केस स्टडी इत्यादि पर शोध किए हुए तरीकों से उन्हें परिचित कराया जाए |
ऐसा करने से भ्रष्टाचार कम होगा | दक्षता बढ़ेगी | दूसरी की इनकी वेतन ठीक-ठाक हो | अत्यंत निम्न वेतन भी भ्रष्टाचार का कारक हो सकता है | ऐसे भी चुनावों को जीतने के लिए पैसे खर्च करने पड़ते है | समय-समय पर अच्छे कार्य करने वालों को पुरस्कृत/सम्मानित भी करें |
इनसे हमारे शहरों, गांवों में बदलाव आएगा | अगर ये सभी योग्य एवं नैतिक तरीकों से कार्य करें तो इनके छोटे छोटे कार्य ही मिलकर एक बड़ी बदलाव ले आएँगे |
उसी तरह देश में 4, 123 विधायक एवं 788 सांसद है | इनके भी प्रशिक्षण हेतु संस्था हो | इनमें से कुछ बाहुबली होते है | उन पर आपराधिक आरोप होते है | दूसरा, चुनावों को जीतने के लिए पैसे खर्च करने पड़ते है | तो भ्रष्टाचार भी है | सांसद निधि योजना एवं विधायक क्षेत्र विकास निधि योजना के तहत इनके पास भी कुछ करोड़ रूपए होते है, विकास हेतु खर्च करने को | सबसे अहम की ये हमारी विधि के निर्माता होते है | इनकी भी नैतिक गुणों को बढ़ावा देने हेतु संस्थाएं हो | जिस पर जितनी अधिक जिम्मेदारी है, उन्हें तो और योग्य होना चाहिए, प्रशिक्षण मिलना चाहिए |
देश में 5, 000 आईएएस अधिकारी , लगभग इतने ही आईपीएस अधिकारी, लगभग इतने ही आईएफएस अधिकारी, एवं करीबन 10, 000 आईआरएस अधिकारी है | ऐसे अन्य और भी सेवाओं में अधिकारी है | इनकी योग्यता परीक्षाओं से तय होती है | फिर यूपीएससी और अन्य संस्थाएं प्रशिक्षण देती है | किन्तु फिर भी कुछ भ्रष्ट होते है | प्रक्रिया एकदम शत प्रतिशत तो कार्य नहीं कर सकती | किन्तु परीक्षाओं एवं प्रशिक्षण से दक्षता तो बढ़ती है | उसी तरह सरपंच, मुखिया, वार्ड सदस्य, महापौर, विधायक, एवं सांसदों को प्रशिक्षित करने हेतु विशेषज्ञ संस्था बनाई जाए | इससे दक्षता बढ़ेगी, भ्रष्टाचार सीमित होगा | कुछ ऐसी संस्थाएं है भी जो प्रशिक्षण देती है किन्तु इसे विधिवत तरीके से अनिवार्य कर देनी चाहिए |
भारत में सुप्रीम कोर्ट के 34 न्यायाधीश, उच्च न्यायालयों में लगभग 1,000 न्यायाधीश, एवं निम्न अदालतों में करीबन 22,000 न्यायाधीश है | मुख्यतः जो कानून की पढाई करते है वहीं इनमें जाते है | ये कानून के जानकार होते है, विशेषज्ञ होते है, किन्तु इन न्यायालयों में 4 करोड़ 40 लाख से भी अधिक मामले लंबित पड़े है | कोई ‘अखिल भारतीय न्यायिक सेवा’ नहीं है, हांलांकि इसका प्रावधान संविधान के अनुच्छेद 312 में है | न्यायाधीश ‘के चंद्रु’ ने 96,000 मामलों का निपटारा कर दिया | उनका मानना है की सुनियोजित वर्गीकरण कर ऐसा संभव है | तो माननीय न्यायाधीशों को अधिक दक्ष बनाने के लिए, प्रशिक्षित करने के लिए कौन सी संस्था है? ‘राष्ट्रीय न्यायिक अकादमी’ सुप्रीम कोर्ट एवं उच्च न्यायालयों पर ही ध्यान देती है | निम्न अदालतों में जहाँ सबसे अधिक ज़रुरत हैं उनकी प्रशिक्षण के लिए संस्था हो |
देश के 28 राज्यों के मुख्यमंत्री, 8 केंद्र शासित प्रदेशों के उपराज्यपाल व प्रशासक, प्रंधानमंत्री एवं उनके मंत्री परिषद् जिनमें की 30 कैबिनेट मंत्री एवं 47 राज्य मंत्री, इन 114 लोगों में 67 (राज्य मंत्री को अगर न लें तो) लोग ऐसे हैं जो विकास को गति देते है | अतः राज्यों एवं केंद्र में सहभागिता आवश्यक है | नीति आयोग राज्यों की रैंकिंग करती है, उसी तरह मंत्रियों के कार्य की भी रैंकिंग की जनि चाहिए | कौटिल्य ने मंत्रियों के कार्य के विश्लेषण को देश के लिए आवश्यक बताया है | ये 67 गणमान्य एवं जो लगभग 100 सचिव है, ये भ्रष्टाचार रहित होने चाहिए | क्यूंकि सरकारी सम्पति का निजीकरण, टेंडर इत्यादि ठेके जिनमें करोड़ों का कार्य होता है, अगर वहां क्रोनी कैपिटलिज़्म की जड़ें जमनी लगी तो देश के लिए हितकारी नहीं होगा | इस स्तर पर भ्रष्टाचार को पकडे कौन? ये दिखता तो हैं किन्तु पकड़ में नहीं आता | अतः ऐसे लोग भ्रष्ट न हो, वेतन बढ़ा दें किन्तु भ्रष्ट न हो |
दूसरी बात ये है की भारत में लगभग 7 लाख डॉलर मिलियनेयर है और 237 डॉलर बिलियनेयर है | ये सब बड़ी-बड़ी कंपनियों के मालिक है | इनकी नैतिकता एवं योग्यता भी मायने रखती है | क्या ये देश के हित को सर्वोपरि रखते है? क्या ये रोजगार सृजन में, कंपनी के स्वस्थ कल्चर में, पारदर्शिता में, नवाचार में विश्वास रखते है ? क्या ये क्रोनी कैपिटलिज़्म को गलत मानते है? क्या ये करुणामय रूप से, उचित कार्यों के लिए दान कर रहे है? क्या जो ऐसा करते है उन्हें हम आदर्श मान रहे है? सम्मानित कर रहे है?
भ्रष्टाचार और क्रोनी कैपिटलिज्म की मुख्य वजह है चुनावों में जीतने के लिए पैसे का जुगाड़ करना | शासन सबको प्यारा है | धन संचय सभी करना चाहते है | एक सम्बन्ध की संभावना है | तो क्या सरकारी खर्चे पर चुनाव कराए जाए? आम जनता से धन संग्रह की जाए?
जो भी हो, अंततः बात ये हैं की 140 करोड़ के देश में शक्ति का केन्द्रीकरण है | पूंजीपतियों, सरपंच से लेकर सांसदों, सरकारी कर्मचारियों, न्यायाधीशों, बुद्धिजीवियों, सेनाओं के नेताओं, आन्दोलनों के नेताओं इत्यादि को जोड़ लें तो 10 लाख का अनुमान बैठता है | ये दस लाख चाहते है की स्तिथि ऐसी ही रहे – दस लाख बाकी 139 करोड़ नब्बे लाख की जिंदगी के फैसले तय करते है | चाहे तो घर में बंद कर दे, चाहे तो जेल में बंद कर दें, चाहे तो नौकरी दें अथवा न दें | बाकी उन्हें हटाना चाहते है | शक्ति के लिए संघर्ष है | | हाँ! एकता में शक्ति है | अतः एक बनें, शिक्षित बनें, जागरूक रहें, सशक्त बनें, और इनकी जिम्मेदारी तय करें | किन्तु इन दस लाख लोगों का उचित प्रशिक्षण, नैतिक योग्यता, दक्षता, देश के विकास की गति को तय करती है | इसके लिए वैधानिक तरीके से संस्थाएं बनाई जाए जो इनको प्रशिक्षित कर इनकी दक्षता बढ़ाए | यहीं इस लेख का मुख्य उद्देश्य है |